आस्तीनों में पलते रहे हैं आस्तीनों में पलते रहेंगे
जितने रिश्तो भी हैं सांप जैसे ज़हर यूं ही उगलते रहेंगे... शबीना अदीब की शानदार ग़ज़ल सुनें सिर्फ़ साहित्य तक पर.