धरती मां की जान है जंगल
कुदरत की पहचान है जंगल
गौर से देखो खुदा दिखेगा
मानो तो भगवान है जंगल
मज़हब है जंगल के बाहर
मज़हब से अंजान है जंगल...
ग़ज़ल के ये अश'आर हिंदुस्तान के मकबूल शायर और गीतकार शकील आज़मी के हैं. शकील आज़मी किसी परिचय के मोहताज नहीं, उनकी शायरी और उनके गीतों का सुरूर सभी पर सिर चढ़कर बोलता है. आज साहित्य तक के प्रतिष्ठित कार्यक्रम 'शब्द-रथी' में बतौर मेहमान शकील आज़मी हमारे साथ मौजूद हैं. शकील आज़मी की नई पुस्तक 'बनवास' इन दिनों खूब चर्चा में है. इस पुस्तक में शकील ने रामायण के लगभग हर एक पात्र को लेकर बड़ी ही रचनात्मकता से नज़्में और ग़ज़लें लिखी हैं.
चाहे वह प्रभु राम हों या जामवंत, अहल्या हों या शबरी, जटायू हों या बाली, सूपर्णखा हो या रावण...शकील ने हर एक पात्र पर बहुत खूबसूरती से नज़्मों/ ग़ज़लों के ज़रिए अपनी बात रखने की कोशिश की है. रामायण से इतर 'बनवास' पुस्तक जंगल की भी बात करती है. न सिर्फ़ जंगल की बल्कि जंगल की उन भावनाओं की भी बात करती है, जिससे आम इंसान अनभिज्ञ है. शकील आज़मी की अबतक 'धूप दरिया', 'ऐश ट्रे', 'रास्ता बुलाता है', 'ख़िज़ां का मौसम रुका हुआ है', 'मिट्टी में आसमां', 'पोखर में सिंघाड़ा', 'चाँद की दस्तक', 'परों को खोल', 'आग से बिछड़ा धुआं' और 'दिल परिंदा है' जैसे हिंदी-उर्दू काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. इन पुस्तकों के अलावा शकील आज़मी बाॅलीवुड के कई मशहूर गीतों का लेखन कर चुके हैं, जिनमें;
-सांसों को जीने का सहारा (ज़िद)
- तेरी फरियाद (तुम बिन 2 )
- तू बन जा गली बनारस की (शादी में ज़रूर आना 2017)
- एक टुकड़ा धूप (थप्पड़ 2020) शामिल है.
इतना ही नहीं, शकील आज़मी को कई प्रतिष्ठित सम्मानों से भी नवाज़ा जा चुका है, जिनमें कैफ़ी आज़मी पुरस्कार, गुजरात गौरव पुरस्कार, गुजरात उर्दू साहित्य अकादमी पुरस्कार, उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार, बिहार उर्दू अकादमी पुरस्कार, महाराष्ट्र उर्दू साहित्य अकादमी पुरस्कार शामिल हैं. निश्चित तौर पर शकील आज़मी बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं. उनकी शायरी मानव मूल्यों की उन बारीकियों को स्पर्श करती हैं, जहां तक बहुत कम ही शायर पहुंच पाते हैं. 'शब्द-रथी' कार्यक्रम में चर्चा के दौरान शकील आज़मी ने कहा-
- रामायण किसी एक धर्म का नहीं!
- हिंदुस्तान के तहज़ीब की धरोहर है रामायण!
- राम, राजा भी हैं, इंसान भी हैं और भगवान भी हैं!
- शायर और उल्लू अक्सर कम सोया करते हैं!
- एक आदमी को बनाने के पीछे सिर्फ़ औरत का हाथ नहीं होता!
- राहुल सांकृत्यायन और हरिऔध मेरे Symbolic दादा हैं! - और- राम 'मर्यादा पुरुषोत्तम' कैसे हैं? जैसे तमाम कथनों और सवालों पर विस्तार से अपनी बात रखी है. 'बनवास' उर्दू में 2020 में प्रकाशित हुई थी. अब यह उसी कलेवर के साथ देवनागरी में हिंदी पाठक जगत के लिए उपलब्ध है. अगर आप भी रामायण और जंगल को करीब से जानने और समझने में रुचि रखते हैं तो इस पुस्तक को खरीदकर पढ़ सकते हैं. इस संग्रह का मूल्य 299 रुपए है, और प्रकाशक हैं मंजुल पब्लिशिंग हाउस.
... तो बनवास जैसी अनूठी कृति पर शायर शकील आज़मी संग वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय की इस बातचीत को यहां सुनिए.