सैलानी ज़रा ठहरो यहां इतिहास सोए हैं
यहां रणबांकुरों ने रेत में शीष बोए हैं
यह वही भूमि है जो युद्ध को श्रृंगार देती है
किसी पद्मावती को रूप अंगार देती है...विनीत चौहान की यह शायरी सुनिए सिर्फ साहित्य तक पर.