कविता के लिए अज्ञेय
आकाश से शब्द उठाते हैं
केदारनाथ धूल से
श्रीप्रकाश शुक्ल रेत से
पहला-निर्वात है
कह नहीं सकता
ताकना तुम
तर्क की तह में सत्य दीखेगा
दूसरा-गुलाब है
गन्ध आ रही है
नाक में
तीसरा-नदी है
जिसमें एक नाव है
जो औंधे मुंह लेटी पड़ी है!
श्रीप्रकाश शुक्ल का काव्य-संसार मूलतः उनका आस-पड़ोस है. आस-पड़ोस का अर्थ सहजीवन से है. सहजीवन में प्रकृति और उसके उपदान हैं, सामाजिक हैं, सामाजिक की सामूहिक चेतना है; उत्सव है, ध्वंस है विसंगतियां, अपक्षरण, क्रूरताएं हैं. ये सब मिलकर जिस काव्यात्मक व्यायोम की रचना करते हैं और उसके लिए काव्य की जिस संवेदनात्मक संरचना का विस्तार करते हैं उसके लगभग सभी आयामों को इस पुस्तक में दर्ज करने की कोशिश की गयी है.
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आज की किताबः 'असहमतियों के वैभव के कवि श्रीप्रकाश शुक्ल'
सम्पादन: कमलेश वर्मा, सुचिता वर्मा
भाषा: हिंदी
प्रकाशक: वाग्देवी प्रकाशन
पृष्ठ संख्या: 424
मूल्य: 600
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.