महिलाओं को अपने इतिहास के बारे में अच्छी जानकारी होना बेहद जरूरी है. जब तक महिलाएं अपने इतिहास को नहीं जानती, तब तक उन पर शासन करने वाली नीतियों से मुक्ति की उम्मीद कैसे की जा सकती है...वे तमिल भाषा में लिखती हैं. उन्होंने ताउम्र छद्म नाम से लिखा लेकिन महिलाओं को समाज के छद्म जाल से मुक्ति दिलाने का प्रयास किया. औरतनामा में आज हम बात कर रहे हैं, तमिल लेखिका सी. एस. लक्ष्मी की. जिन्होंने सोलह वर्ष की उम्र से लघु कहानियां लिखना आरंभ किया...रोजमर्रा के जीवन में बिखरे दुख, अलग व्यक्तित्व, अनुभव, यादों, यात्राओं को अंबाई नाम के साथ उकेरा और यही अंबाई नाम उनकी पहचान बन गया. वक्त के साथ परिपक्व हो रही सी.एस.लक्ष्मी ने फिर अपना संपूर्ण जीवन महिलाओं पर शोध करने में लगा दिया. वे पिछले तीस वर्षों से महिलाओं की समाजिक स्थिति और इतिहास पर शोध कर रही हैं. जो अभी तक अनवरत जारी है.
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय से स्कॉलर कर रही अंबाई ने सपना देखा कि एक ऐसा अभिलेखागर भी होना चाहिए जहां महिलाओं द्वारा लिखी गए शब्दों, चित्रों, आवाजों आदि का दस्तावेजीकरण और संरक्षण हो. फिर वे पूरी शक्ति से अपने इस अभियान को पूरा करने में जुट गईं और फिर जन्म हुआ ‘साउंड एंड पिक्चर आर्काइव्स फॉर रिसर्च ऑन वुमेन’ स्पैरो की वे संस्थापक और निर्देशक हैं. अंबाई ने बारत की तेईस भाषाओं के सत्तासी लेखकों के अनुवादों की पांच खंडों की एक श्रृखंला का संपादन किया है. अपनी कोशिशों के कारण वे अनेक महिलाओं की आवाज बन गईं जिन्हें सदियों से अनसुना किया जा रहा था.
अपने शोध कार्यों के इतर अंबाई किस्सागोई में भी माहिर है. उन्होंने स्त्री जीवन के कठिन पहलुओं को अपनी किस्सागोई से सुंदर कहानियों में उकेरा है. उनकी लिखीं कई किताबों का तमिल से अंग्रेजी भाषा में अनुवाद हुआ है, जिनमें से प्रमुख हैं, द फेस बिहाइंड मास्क तमिल साहित्य में महिलाएं, ए पर्पल सी , बॉडी ब्लोस महिलाएं हिंसा और अस्तित्व. सेवन सीज एंड सेवन माउंटेंस (महिला संगीतकारो के साथ बातचीत) द अनरीड सिटी (चेन्नई पर आधारित) इन ए फॉरेस्ट ए डियरः स्टोरी बाय अंबाई. ए मीटिंग ऑन द अंधेरी ओवरब्रिज- सुधा गुप्ता इन्वेस्टीगेट आदि प्रमुख हैं.
सी.एस.लक्ष्मी उर्फ अंबाई ने जितना लिखा उतना ही महिलाओं से संबंधित इतिहास को गुना. उन्हें एक जगह संग्रहित करने का महती काम किया. स्पैरो संस्था के तहत उन्होंने महिलाओं के इतिहास को ना सिर्फ सहेजा है बल्कि वे उसे अन्य महिलाओं से साझा भी करती हैं. स्पैरो में लगातार कार्यशाला लगती है. जहां शोधार्थी आते हैं, महिलाओं से संबंधित इतिहास, इतिहास में महिलाओं द्वारा किए अभूतपूर्व कार्यों को समझते हैं, उनसे प्रेरणा लेते हैं.