रचनाओं के निरंतर अस्वीकृत होने की पीड़ा से त्रस्त लेखक जी को अब किसी पर भी विश्वास नहीं रहा, हार कर वह फिर से अंधविश्वासों पर यकीन करने को मजबूर हो रहे हैं. आज कल किसी पर भी विश्वास करना पेट्रोल, डीज़ल और टमाटर के दामों जैसे मुश्किल हो गया है...प्रभात गोस्वामी का व्यंग्य "लिखने-छपने के टोटके" सुनिए सिर्फ साहित्य तक पर