अतीत से क्या निकाल लाए हैं काशीनाथ सिंह | संस्मरण- आहटें सुन रहा हूँ यादों की | EP 939 | Sahitya Tak
'काशी का अस्सी' के रचयिता साहित्यकार काशीनाथ सिंह की स्मृति-कथाओं की तीसरी कड़ी है ‘आहटें सुन रहा हूँ यादों की’. इस पुस्तक में छोटे-बड़े 18 संस्मरण शामिल हैं, जिनमें उनका गांव, उसकी माटी, जीवन का संघर्ष, विश्वविद्यालय की राजनीति, नामवर सिंह का भाई होने के सुख-दुःख, लेखकीय संसार और पूरे ठाठ से अस्सी मौजूद है. ये संस्मरण उन्होंने समय समय पर लिखे थे, पर संग्रह के रूप में पहली बार आए हैं. दो खंडों में बंटी इस पुस्तक के पहले खंड के संस्मरण निजी जीवन के इर्द-गिर्द घूमते हैं. दूसरे खंड में काशीनाथ सिंह के निकट जनों के संस्मरण हैं. हमारे समय के एक बड़े साहित्यकार के इन संस्मरणों से गुजरते हुए आभास होता है कि स्मृतियों की भी अपनी एक दुनिया होती है, जिनमें उनसे जुड़ा समूचा कालखंड झांकता है.
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आज की किताबः आहटें सुन रहा हूँ यादों की
लेखक: काशीनाथ सिंह
भाषा: हिंदी
विधा: संस्मरण
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन समूह
पृष्ठ संख्या: 224
मूल्य: 299 रुपए
साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.