औरतों का ही दरिया, औरतों का ही समंदर... Prabhat Pandey | काव्यगाथा- उमराव जान | EP 954 | Sahitya Tak | Tak Live Video

औरतों का ही दरिया, औरतों का ही समंदर... Prabhat Pandey | काव्यगाथा- उमराव जान | EP 954 | Sahitya Tak

ये क्या किया उमराव जान

तुमने ये क्या किया

सरेआम मेरे शाने पर सिर धर दिया

अपनी मुहब्बत का इस क़दर इज़हार'

जुल्फें बिखर-बिखर बेक़रार-बेक़रार

और गुनगुनाती तुम वही गीत बार-बार

जंगल-जंगल सुनसान भयो

सुन पाई ऐसी बांसुरिया।


बांसुरिया ही तो उमराव जान

जिसके खो जाने पर

हुए थे कान्हा परेशान ।


परेशान तो जोगन भी

कि बीत गए चार पार बीस बरस देखी न रहस²।


तभी तो गुर्बत' का वादा

उसका पक्का इरादा

जोगन के लिए कुछ करने चला

परियों से जाकर ख़ुद ही मिला।


परी दिलरुबा

इज़्ज़त परी

यासमीन परी और हूर परी

कान्हा का रूप धरी माहरुख परी

और राधा बनी सुल्तान परी।


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आज की किताबः उमराव जान

लेखक: प्रभात पाण्‍डेय

भाषा: हिंदी

विधा: कविता

प्रकाशक: सर्व भाषा ट्रस्ट

पृष्ठ संख्या: 103

मूल्य: 180 रुपये


साहित्य तक पर 'बुक कैफे' के 'एक दिन एक किताब' में वरिष्ठ पत्रकार जय प्रकाश पाण्डेय से सुनिए उपरोक्त पुस्तक की चर्चा.