Mere Mehboob मैं जादू हूं चल जाऊंगा | Rakesh Anand Bakshi on his Father Anand Bakshi | Sahitya Tak | Tak Live Video

Mere Mehboob मैं जादू हूं चल जाऊंगा | Rakesh Anand Bakshi on his Father Anand Bakshi | Sahitya Tak

मैं कोई बर्फ़ नहीं हूं जो पिघल जाऊंगा

मैं कोई हर्फ़ नहीं हूं जो बदल जाऊंगा

मैं सहारों पे नहीं, ख़ुद पे यकीं रखता हूं

गिर पडूंगा तो हुआ क्या, मैं संभल जाऊंगा

- आनंद प्रकाश बख़्शी (नंद)

आज लोकप्रिय गीतकार और कवि आनंद बक्शी की जयंती है, और इस मौके पर 'बातें-मुलाकातें' कार्यक्रम में हमारे साथ मौजूद हैं उनके सुपुत्र राकेश आनंद बक्शी. हमने राकेश से यह जानने की कोशिश की कि 42 साल के लंबे करियर में छह सौ फिल्मों के लिए, करीब ढाई सौ निर्देशकों और 96 संगीतकारों के साथ 4000 के आसपास गाने लिखने वाले इस बड़े गीतकार का जीवन कैसा था. आनंद बक्शी लोकप्रिय कवि और गीतकार थे. 21 जुलाई, 1930 को संयुक्त भारत, अब पाकिस्तान के रावलपिंडी में जन्मे आनंद बक्शी का परिवार 1947 में लखनऊ आ बसा था. उन्होंने रॉयल इंडियन नेवी में बतौर कैडेट काम किया. लेकिन नेवी में विद्रोह के बाद वह गायक बनने मुंबई पहुंचे. सबसे पहले उन्हें 1958 में भगवान दादा की फिल्म 'भला आदमी' में गीत लिखने का अवसर मिला. फ़िल्मों में वे बख़्शी के स्थान पर बक्शी सरनेम लिखा करते थे. उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार में सर्वश्रेष्ठ गीतकार के लिए चालीस बार नामांकित किया गया, जिसमें वे चार बार विजयी रहे. 30 मार्च, 2002 को उनका निधन हुआ था. इस बातचीत में हमने राकेश आनंद बक्शी से कई बातें जाननी चाहीं, जिनमें ये प्रश्न भी शामिल थे -

- आनंद बक्शी को ज़िंदगी से क्या कोई शिकायत थी?

- फिल्म फेयर अवार्ड के लिए क्यों अड़ गए थे आनंद बक्शी?

- साहिर लुधियानवी के साथ अपनी तुलना पर क्या बोलते थे आनंद बक्शी?

- आनंद बक्शी शायर हैं या गीतकार?

- आनंद बक्शी घर में किसी को खाने पर क्यों नहीं बुलाते थे?

- क्या था बक्शी साहब के जीवन का सबसे बड़ा दुख?

फिल्म पटकथा लेखक, निर्देशक, अभिनेता, लेखक, फोटोग्राफर, तैराक, पैदल यात्री और साइकिल चालक राकेश आनंद बक्शी ने अपने पिता आनंद बख्शी की डायरी में दर्ज अनसुने नग्मों को 'मैं जादू हूँ चल जाऊँगा' नामक संग्रह में संकलित किया है. इस पुस्तक में बक्शी साहब के गीतों, कविताओं, ग़ज़लों में प्रेम के इंद्रधनुषी रंग मौजूद हैं. इनमें रूमानियत के रंग भी हैं. आनंद बक्शी साहब ने अपनी इन कविताओं के द्वारा लोगों के जीवन की अमावस रातों को चांदनी रातों में तब्दील करने की भरपूर कोशिश की है. यह संग्रह जीवन में पलायन करने की बजाय साहसी बनकर मुकाबला करने और जीतने की प्रेरणा देने में सक्षम है. पेंगुइन स्वदेश से हिंदी में प्रकाशित 'मैं जादू हूँ चल जाऊँगा' संग्रह में कुल 184 पृष्ठ हैं और इसका मूल्य है 299 रुपए. तो सुनिए राकेश आनंद बक्शी से आनंद बक्शी साहब की जिंदगी पर आधारित यह दिलचस्प बातचीत.